मुग़ल साम्राज्य का पतन 1707 में औरंगजेब की म्रत्यु के पश्चात मुग़ल साम्राज्य में सत्ता के लिए संघर्ष‚ जिसके परिणाम स्वरूप धीरे धीरे मुग़ल शक्ति का विनाश होना‚ जिसके लिए एक से अधिक कारक उतरदायी थे Ι
क्षेत्रीय राज्यों का उदय
- 18 वी शताब्दी के पूर्वार्ध में कमजोर होते मुग़ल शासन के कारण इनके परत्यक्ष और अप्रत्क्ष नियंत्रण वाले प्रांतो के शासको ने स्वतंत्र रूप से शासन करना प्रारंभ कर दिया Ι जिसने मुग़ल साम्राज्य का पतन में एक अहम भूमिका निभाई Ι
- 1700 में औरंगजेब द्वारा नियुक्त बंगाल के दीवान व सूबेदार (1717 में ) मुर्शिद कुली खां ने विघटन की स्थिति का लाभ उठाकर बंगाल पर स्वतंत्र रूप से शासन प्रारंभ कर दिया Ι
- 1722 में मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह द्वारा नियुक्त अवध ( जो की गंगा और यमुना के बीच उपजायु मैदान ) का सूबेदार सआदत खां बुरहान उल मुल्क ने कमजोर होते मुग़ल साम्राज्य का लाभ उठाकर अपनी मृत्यु तक ( 1739 ) अवध को एक स्वतंत्र रियासत बना दिया था जिसको 1856 में लार्ड डलहौजी ने कुसासन का आरोप लगा कर ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया Ι
- 1724 में चिन्किलिच खां ( निज़ामुलमुल्क आसफशाह ) द्वारा हैदराबाद में स्वतंत्र आसफशाही वंश की स्थापना की Ι और जो की 1798 में लार्ड वेलेजली की सहायक संधि को स्वीकार करने वाली सवर्प्रथम भारतीय रियासत थी Ι
- विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद मैसूर राज्य में हैदर अली और टीपू सुल्तान ‚ दिल्ली आगरा व मथुरा के समीपवर्ती क्षेत्रो में जाट ‚ रंजीत सिंह के नेतृत्व में पंजाब में सिख साम्राज्य ‚ और शिवाजी के अंतर्गत मराठा साम्राज्य का उदय आदि ऐसे अनेक मुग़ल साम्राज्य का पतन हेतु जिमेदार थे Ι
कमजोर व अयोग्य उत्तराधिकारी
- औरंगजेब की मृत्यु (1707 ) के पश्चात मुग़ल साम्राज्य पर शासन करने वाले सम्राट कमजोर व अयोग्य थे जो की मुग़ल साम्राज्य का पतन को बचाने में सफल नहीं हुये Ι
- औरंगजेब के बाद बहादुर शाह ( 1707-1712 ) से लेकर बहादुर शाह जफ़र (1837-1712) तक ऐसा कोई भी सम्राट नहीं हुआ जिसने पतन होते मुग़ल साम्राज्य को एकजुट रखने की तत्परता दिखाई हो Ι
- बल्कि सत्ता हेतु आपसी संघर्ष , लोगो के प्रति गैरज़िम्मेवारन व्यवहार , सेना व अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने की तरफ ध्यान न देना आदि ऐसे कारण थे जो औरंगजेब के उत्तराधिकारियों की अयोग्यता को दर्शाते है Ι
कृषि – भूमि सम्बन्धी संकट
- मुग़ल साम्राज्य का सम्पूर्ण ढांचा कृषि एंव राजस्व वयवस्था पर टिका हुआ था जिसमे जागीरदारी व मंसबदारी वयवस्था का एक अहम रोल था और इस वयवस्था के अंतर्गत संकट होने से मुग़ल साम्राज्य की नींव हील गयी जिसे डॉ इरफ़ान हबीब द्वारा कृषि – भूमि संकट कहा है Ι
- सम्पूर्ण जागीरदारी वयवस्था किसान, जमींदार और मनसबदार के सम्बन्धो पर टिकी हुई थी और इसमें किसी प्रकार का असंतुलन पूरी वयवस्था बिगाड़ सकता था Ι
- साम्राज्य की सुरक्षा के लिए व मजबूत सेना हेतु अधिक से अधिक राजस्व प्राप्त करने के लिए किसानो पर करो के बोझ का बढ़ना जिससे किसानो में असंतोस पैदा होना, जागीरदारो का थोड़े समय में ही तबादला करना जिससे उनके द्वारा भूमि के विकास पर ध्यान न देना,
- अधिक से अधिक भूमि को सैर- ऐ – हासिल जागीर में तब्दील करना जिससे जागीरदारो में इसे हासिल करने हेतु गुटबंदी का होना आदि ने कृषि भूमि संकट के साथ साथ आर्थिक संकट को भी जन्म दिया
- जिसके कारण भष्टाचार व दरबारी षड्यंत को बढ़ावा मिला और इससे केंद्रीय सत्ता कमजोर पड़ने लगी अर्थात इसने भी मुग़ल साम्राज्य का पतन में एक भूमिका निभाई Ι
विदेश निति व बाहरी आक्रमण
- साम्राज्य के निति निर्धारण में उसकी विदेश निति का बड़ा योगदान रहता है जिसका एकमात्र उदेशय अपने हितो की पूर्ति करना Ι
- पश्चिम एशिया एव मध्य एशिया में तैमूर व तुर्की राज्यों के पतन के बाद दो नये राज्य उज्बेक एव सफ़ावी उदय हुये Ι वही दूसरी तरफ ट्रांस आक्सीयन, ओटमन तुर्की तथा भारत में मुग़ल राज्य का उदय हुआ जो की ये तीनो सुन्नी थे Ι
- उत्तर – पश्चिम सीमा पर सिथत उज्बेको के साथ ऐतिहासिक सम्बन्धो की सुरवात अकबर कर काल में हुई परन्तु जहांगीर के काल तक मुग़ल उज्बेको के प्रति सजग रहे और शाहजहाँ के काल में देखने को मिला Ι
- वही ईरानियों के साथ सम्बन्ध भी मधुर थे जैसे हुमायु के द्वारा शरण नहीं ईरानी शासक के यहां ली थी Ι ईरानियों द्वारा कंधार पर कब्ज़ा कर लेने के बाद सम्बन्ध खराब हुये Ι
- 1739 में ईरान शासक नादिरशाह द्वारा किया आक्रमण जिसमे मुग़ल सम्राट मुहमद शाह की हार ( करनाल के युद्ध में ) और उसके बाद दिल्ली में लूटमार और नरसहार व कत्लेआम जिससे मुग़ल साम्राज्य के पतन को और गति मिली Ι
- 1761 में काबुल के शासक अहमद शाह अब्दाली द्वारा किया गया आक्रमण जिससे उतरी भारत में एक राजनैतिक शून्य की स्थिति का उत्पन होना जिसे अंग्रेजी सत्ता द्वारा भरा गया Ι
दरबारी षड्यंत्र व गुटबंदी
- सामंत वर्ग में सामंजस्य एव सहयोग की भावना का कमजोर होने से गुटबंदी का आरंभ होना इनमे थे – ईरानी, तुरानी, भारतीय मुसलमान, राजपूत एव अन्य गुट Ι
- अमीरो की गुटबंदी से जब नादिरशाह व अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण हुआ उस समय मुग़ल दरबार सड़यंत्रकारी गुटों में विभाजित था Ι
- दरबारी सडयंत्रो व बादशाहो की कमजोरी के कारण सुबेदारो ने अपने अपने प्रांतो में स्वतंत्र राज्यों की स्थापना की जो मुग़ल साम्राज्य का पतन के कारण बने Ι
निष्कर्ष :
इतने बड़े साम्राज्य के विघटन के लिए कोई एक कारक उतरदायी नहीं हो सकता बल्कि इसके लिए एक से अधिक कारक उतरदायी रहे होंगे इसलिए उपर्युक्त कारको के अध्ययन के पश्चात इनमे से किसी एक कारक को निर्णायक करार देना तथ्यों का सरलीकरण होगा Ι