अकबर (Akbar) का सिहासंरोहण सर्वप्रथम हुमायु की आकस्मिक मृत्यु के पश्चात बैरम खान के सरंक्षण में पंजाब में हुआ और फिर पानीपत के दूसरे युद्ध (1556 ) के बाद मुग़ल फिर से दिल्ली पर कब्ज़ा करने में सफल रहे और अकबर आगरा व दिल्ली पर हुमायु के उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित हुआ Ι अकबर 1556 से 1605 तक मुग़ल साम्राज्य का सम्राट रहे और इसे एक महत्वपूर्ण और उदाहरणीय शासक के रूप में याद किया जाता है।
अकबर के समक्ष चुनौतियां
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अफगानो से दोबारा प्राप्त राज्य का प्रसार और सचांलन हेतु संसाधनों को प्राप्त करना
- सक्षम एव संगठित मुग़ल अमीर का गठन करना
- मुग़ल अमीर वर्ग के चगताई स्वरुप को बदलना
- हिन्दू – कुलीन वर्ग के साथ सम्बन्धो को निर्धारण करना
- अल्प्संखय मुस्लिम शासक वर्ग और बहुसंख्य हिन्दू प्रजा के साथ सम्बन्धो को निर्धारण आधी Ι
अकबर के अधीन मुग़ल साम्राज्य
- प्रारंभिक विजय बैरम खान के अदिन ( 1556-1560 ) अफगानो, अजमेर, ग्वालियर और जौनपुर के विरुद्ध विजय
- 1561-62 में अकबर द्वारा बाज बहादुर से मालवा जीता , 1564 में गोंडवाना को साम्राज्य में मिलाना
- 1567 में अकबर द्वारा चितोड़ पर आक्रमण, और 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध में राणा प्रताप को पराजित करना और चितोड़ को पतन, 1569 में रणथम्भोर और कालिंजर विजय
- 1572-73 में गुजरात पर विजय, 1574 में पटना और बंगाल विजय और 1592 में उड़ीसा पर अधिकार
- 1581-82 में मिर्जा हाकिम के विद्रोह के कारण अकबर द्वारा उतर – पश्चिम क्षेत्र की ओर प्रस्थान व 1581 में काबुल पर अधिकार और 1595 तक बलूचिस्तान एव कंधार पर विजय
- अकबर को अंतिम अभियान 1601 में असीरगढ़ के महान किले के विरुद्ध खानदेश पर विजय हेतु
- 1604 तक अकबर के साम्राज्य की सीमा उत्तर में कंधार एव काबुल से लेकर दक्षिण में अहमदनगर एव खानदेश तथा पछिम में सूरत और पूर्व में कूच- बिहार तक थी Ι
अकबर की राजपूत निति
- अकबर द्वारा राजपूत राज्यों के प्रति दोहरी निति अपनायी जिसे छड़ी और पुरस्कार की निति कहते है Ι
- जिन राजपूत राज्यों ने समर्पण किया उन्हें ऊंच मनसब दिये उन्हें अपना राज्य वतन जागीर के रूप में दिया गया
- वही जिन राज्यों ने उसकी अधीनता स्वीकार करने से इंकार किया उन्हें शक्ति के बल पर कुचल दिया गया
- अकबर ने राजपूत राज्यों के साथ वैवाहिक सम्बन्धो पर भी बल दिया
- अकबर की इस निति से राजपूतो का समर्थन मिला और मुग़ल साम्राज्यों की रक्षा हेतु इन्होने संगर्ष किया
- जिससे राज्य का विस्तार हुआ और साथ ही राजपूतो को भी ऊंच पदों पर अपनी प्रतिभा दिखाने को अवसर मिला Ι
अकबर की धार्मिक निति
- जिस समय पश्चिम – एशिया एव मध्य – एशिया में सुन्नी एव सिया के नाम पर और
- यूरोप में रोमन कैथोलिक एव प्रोटोस्टेंट के द्वारा धर्म के नाम पर लड़ाई हो रही थी उस समय अकबर ने उधार धार्मिक निति ग्रहण की थी Ι
- अकबर द्वारा सर्वप्रथम हिन्दुओ की धार्मिक अपंगता को दूर करने के लिए अनेक कदम उठाये जैसे की 1563 में तीर्थ यात्रा कर को समापत, 1564 में जजिया कर समापत, जबरन दास बनाने पर पाबंधी( 1562 )
- मुस्लिम अमीरो के समानांतर हिन्दू अमीरो को समान दर्जा देना जैसे सर्वप्रथम राजपूत मनसबदार राजा मानसिंह को 7000 जात और सवार का दर्जा
- भारत की समन्वित संस्कृति को समान देने हेतु इंडो – फारसी साहित्य एव इंडो- इस्लामिक स्थापत्य को प्रोतसाहन वही राजत्व की नवीन अवधारणा के रूप में ” सुलह ए कुल ” की निति पर बल देना
- 1575 में अनेक धार्मिक पंथो के मर्म को समझने हेतु इबादतखाना की स्थापना
- वे धर्म के प्रति उदार दृष्टिकोण और सहमति की भावना के लिए प्रसिद्ध थे।
राजा बनने के समय उनकी आयु मात्र 13 वर्ष थी, लेकिन उन्होंने नेतृत्व कौशल और राजनीतिक बुद्धिमत्ता के साथ राज्य को स्थिरता दिलाई। वे भारतीय इतिहास में अपने व्यापक साम्राज्य, सामाजिक सुधार, और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध हैं।
प्रसाशनिक सुधार
- अकबर के अंतरगत ही एक ठोस और संगठित साम्राज्य का गठन हुआ
- अकबर द्वारा न सिर्फ केंद्रीय प्रशासन को संगठित स्थापित किया बल्कि एक प्रान्तिक प्रसाशन की भी नीव ढाली
- 1580 में साम्राज्य को 12 सुबो में विभाजित किया और अधिकारियो की एक निश्चित समूह को स्थापित किया
- भू- राजस्व सुधार हेतु आएन- ए – दहशाला पद्ति का विकास किया और
- सबसे महत्वपूर्ण मंसबदारी पद्ति का विकास किया जिसके माध्यम से अमीर वर्ग, सिविल अधिकारी और सैन्य अधिकारी सभी को एक साथ जोड़ दिया Ι
- अकबर के प्रशासनिक ढांचे की दो महत्वपूर्ण आधार – प्रशासनिक एकरूपता और रोक व संतुलन
भू- राजस्व व्यवस्था
- भू- राजस्व व्यवस्था के अंतर्गत आइना- ए- दहशाला पद्ति का विकास करना
- इन सुधारो का मुख्य उदेश्य ना सिर्फ राजकीय आमदनी में वर्द्धि करना साथ ही किसानो का विकास भी करना
- भूमि पैमाइस हेतु वैज्ञानिक पद्ति को अपनाना
- भूमि का वर्गीकरण दो आधार पर – उत्पादन की बारम्बारता और उत्पादकता के आधार पर
- भू- राजस्व निर्धारण हेतु 10 वर्ष के औसत की पद्ति को अपनाना
- अनाजों का नगद में परिवर्तन हेतु परतेक दस्तूर में 10 वर्षो के मूल्य का औसत को अपनाना
- जमीदारो पर राज्य का नियंत्रण सख्त करना, कृषि के विकास हेतु राज सहायता प्रधान करना, अमलगुजारो का निर्देश आधी के द्वारा भी किसानो की सुरक्षा की Ι
अकबर के शासनकाल के दौरान
- मुग़ल साम्राज्य ने भारतीय स्थितिकरण का समय देखा, और
- वह एक समृद्धि और सांस्कृतिक अभिवृद्धि का काल था।
- उनका शासनकाल भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है और वे एक महान साम्राज्यकर्ता के रूप में याद किए जाते हैं।
राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन
- अकबर का राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन बहुत ही महत्वपूर्ण था।
- उन्होंने अपने साम्राज्य को धार्मिक और सामाजिक रूप से सुधारा और समृद्ध किया।
- उन्होंने अपने दरबार में कला, साहित्य, और सांस्कृतिक प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित किया।
- मुग़ल साम्राज्य को एक सांस्कृतिक उद्यान के रूप में विकसित किया।
- अकबर के समय पर्याप्त धर्मिक सहमति और समझौता बनाने का प्रयास किया गया।
- उन्होंने अपने दरबार में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, और अन्य धर्मों के लोगों को शामिल किया।
- अकबर के स्थापत्य में दो परम्परा- ईरानी परम्परा ( हुमायु के मकबरे में ) जिसके अंतर्गत दोहरा गुबंद, अंदर के कमरों की तरतीब वही
- दूसरी परम्परा भारतीय – इसके अंतर्गत योजनानुसार पूरी इमारत का निर्माण एक बगीचे में, चार पतली मीनारे जो की गुजराती स्थापत की शैली, भवनों के सौंदर्य हेतु उद्यानों का निर्माण आधी Ι
शासनकाल में भारतीय साहित्य, कला, और विज्ञान में एक सुनहरा काल था और इसको \”अकबर का दरबार\” के रूप में जाना जाता है। उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास में अपनी अद्वितीय धारणाओं के लिए प्रसिद्ध हैं और उनका योगदान आज भी महत्वपूर्ण है।
अकबर को किसने मारा था
कृपया ध्यान दें कि यह जानकारी इतिहासिक दस्तावेज़ों और इतिहासिक अनुसंधानों के आधार पर है और इसमें विवाद हो सकता है। |
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